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लेखनी प्रतियोगिता -10-May-2023 सिन्दूर की कीमत



शीर्षक = सिन्दूर की कीमत



"क्या बात है?,बड़ी देर से देख रही हूँ आप बहुत खामोश बैठे सामने खेल रहे अपने पोते पोतियों को देख रहे है, उनके साथ खेलने भी नही गए, आपकी तबीयत तो ठीक है " माधुरी जी ने पास बैठे अपने पति महेश जी के कांधे पर हाथ रखते हुए उनसे पूछा

"नही, नही मेरी तबीयत को किया होना है, मैं तो बिलकुल ठीक हूँ " महेश जी ने कहा


"अच्छा, तो फिर कोनसी गहरी सोच में डूबे हुए है, आप " माधुरी जी ने कहा


"नही कुछ ज्यादा नही, बस देख रहा हूँ  कि हमारे अब तक के इस सफऱ में आपने अपना कर्तव्य बखूबी निभाया मेरे नाम का सिन्दूर जो हर दम आपने अपनी मांग में सजाये रखा उसकी कीमत बखूबी अदा की आपने, फिर चाहे मैं आपके पास था या नही

मेरी गैर मौजूदगी में आपने कैसे मेरे परिवार को संभाला और किस तरह माला में पिरोये मोतियों जैसा उन्हें पिरोये रखा " महेश जी ने कहा अपनी पत्नि माधुरी की तरफ देखते हुए


माधुरी जी, जो कि अपने पति द्वारा अपने लिए कहे गए शब्दों को बड़ी ध्यान पूर्वक सुन रही थी, एक स्त्री को अगर उसके द्वारा किए गए कामों पर सराहना मिल जाए और अगर उन्हें सराहने वाला उसका जीवन साथी यानी उसका पति हो तो ये बात सोने पर सुहागे से कम नही एक स्त्री के लिए

सामने रखा सोने का हार भी उसे इतनी ख़ुशी नही दे सकता जितना की ये बात उसे ख़ुशी देगी, कि उसके द्वारा किए गए कामों को सराहा जाए


थोड़ी देर खामोश रहने के बाद आखिर कार माधुरी जी बोल पड़ी " मुझे अच्छा लगा आज इतने सालो बाद अपने लिए कुछ सुन कर, "


ये सुन महेश जी ने अपने हाथो में माधुरी जी का हाथ लिया और उनकी आँखों में देखते हुए बोले " माफ करना, जिंदगी की भागदौड़ में दौड़ते दौड़ते पता ही नही चला की जिसे अग्नि को साक्षी मान कर साथ फेरे लेकर, उसकी मांग में अपने नाम का सिन्दूर भर कर काले मोतियों से बना मांगलसूत्र उसके गले में पहना कर अपने घर की लक्ष्मी बना कर लाया था, उसके लिए भी कुछ समय निकालना था,

उसके मन की व्यथा भी जानना थी, सिर्फ अपना ही हुकुम नही बताना था, कुछ उसकी भी सुनना थी, कभी उससे भी उसकी पसंद नापसंद पूछनी थी, सिर्फ अपनी ही पसंद उस पर थोपना नही थी, कुछ समझौता मुझे भी करना था सिर्फ उसे ही मजबूर नही करना था हर चीज के लिए समझौता करने पर, मुझे माफ करना तुमने तो मेरे नाम के सिन्दूर की कीमत बखूबी निभाई और अब भी निभा रही हो, लेकिन मैं तुम्हारी मांग में भरे सिन्दूर की कीमत अदा नही कर पाया, मैं शायद अपनी जवानी में एक अच्छा पति साबित नही हो पाया इसलिए ही तो मुझे अब थोड़ा पछतावा होता है, अपने बेटों को देख कर कि किस तरह वो अपनी पत्नियों को समय देते है, उनकी पसंद और ना पसंद भी जानते है, उन्हें समय भी देते है, शायद ये सब आपकी परवरिश का नतीजा है, शायद मेरा व्यवहार सहन करने के बाद ही आपने अपने बच्चों की ऐसी परवरिश की जिससे की उन्हें पहले से ही मालूम है कि एक स्त्री को पति के पैसों से ज्यादा उसके साथ कि ज्यादा जरूरत होती है, उसे समझने वाले की ज्यादा जरूरत होती है, उसके मन की व्यथा जानने वाले की ज्यादा जरूरत होती है "


माधुरी जी उनकी बात ख़त्म होने से पहले ही बोल पड़ी " नही,, नही इस तरह मत कहिये,, आपके साथ के बिना ये कुछ भी सम्भव नही था, आप  अगर वो सब नही करते तो शायद आज हमारे बेटे अपनी अपनी जिंदगीयों में कामयाब न हो पाते

जिस तरह आपके नाम का सिन्दूर लगा कर मैं आपके घर और बच्चों को संभाल कर उसकी कीमत अदा करती रही ठीक उसी तरह आप भी तो मशीन बन कर धूप, बरसात, जाड़ा हर मौसम में हमारे घर कि दाल रोटी चलाने के लिए घर से निकल जाते थे, हम सब कि जिंदगी को बेहतर बनाने के लिए ही तो आपने वो सब मेहनत कि जिसका सिला आज आपको मिल रहा है, अपने उस छोटे से व्यवसाय को ऊँचाई तक लाने का जो ख्वाब देखा था देखिए उसे किस तरह हमारे बहु बेटे ऊँचाई तक ले जा रहे है



"ठीक कहा, तुमने,, मैंने जो ख्वाब देखा था, जिसके लिए मैंने दिन रात मेहनत की वो ख्वाब अब पूरा हो गया लेकिन तुम्हारा क्या, तुम्हारे पास बैठ कर तुम्हारे दिल का हाल तो नही जान सका, तुम्हारे साथ तो मेरा रिश्ता अच्छा नही रहा, तुम डरी सहमी मेरे हर हुक्म का पालन करती रही एक पतीव्रता पत्नि की तरह और मैं पति ही बन कर रहा कभी दोस्त या हमदर्द बन कर तुम्हारा दर्द बाट न सका, कभी तुमने रोकना भी चाहा कुछ बात करना भी चाही तो कह कर टाल दिया की बात को बात करेंगे अभी समय नही है,

और तुम अपना सा मूंह लेकर रह जाती थी, आज समय ही समय है लेकिन वो जवानी का दौर नही है, ज़ब मैं तुम्हे कही घुमाने, कही आइसक्रीम खिलाने ले जा सकता था, लेकिन नही गया " महेश जी और कुछ कहते तब ही माधुरी जी बोल पड़ी


"छोड़ दीजिये अब पुरानी बातों को, क्या फायदा उन्हें याद कर? मेरे लिए इतना ही काफी है कि आपको देर से ही सही एहसास हो गया, और आप भी इस तरह की बाते करके खुद को परेशान मत कीजिये बस ईश्वर से प्रार्थना कीजिये कि हमारे बेटे हमेशा ऐसे ही रहे जैसा की वो अब है, यानी की अपने शादी शुदा जीवन में आने वाले हर उतार चढ़ाव को मिल झूल कर पार करे, " माधुरी जी ने कहा


"आपने परवरिश की है, मुझे पूरा यकीन है आप पर और आपकी परवरिश पर, हमारे बच्चें जहाँ कही भी रहेंगे ख़ुश और आबाद रहेंगे, उनका वैवाहिक जीवन हमारे वैवाहिक जीवन से बेहतर होगा," महेश जी ने कहा और माधुरी जी को अपने सीने से लगा लिया लेकिन तब ही वहाँ उनका पोता आ गया जिसे देख माधुरी जी शर्मा कर अंदर चली गयी


आज वो बहुत खुश थी, आज उनके सिन्दूर की कीमत उन्हें मिल गयी थी, यानी की उनके पति ने उनके इतने साला त्याग और समर्पण को सराहा और अपनी गलती की माफ़ी भी मांगी, वरना उन्होंने तो उम्मीद छोड़ दी थी कि कभी वो अपने पति के मूंह से अपने लिए कुछ प्यार भरी बाते सुन पाएंगी, वरना तो उन्होंने अपनी पूरी जवानी यूं ही उनके गुस्से और अपने ऊपर पुरुष प्रधानता देखते हुए गुज़ार दी थी, शायद यही कारण था कि उन्होंने अपने दोनों बेटों को अपने बाप जैसा नही बनाया क्यूंकि जो कुछ उन्होंने सहा वो नही चाहती थी कि कल को कोई और भी सहे,



समाप्त.....


प्रतियोगिता हेतु 


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4 Comments

बहुत ही बेहतरीन

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madhura

11-May-2023 12:14 PM

superb story

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Punam verma

11-May-2023 09:08 AM

Very nice

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